कविता लेखन मेरे लिए हमेशा से स्वांत सुखाय ही रहा है. अनेक विषयों पर लिखा, कुछ ब्लॉग पर पोस्ट किए कुछ नहीं, पर कभी नारी सशक्तिकरण पर कोई लेख, कविता आदि नहीं लिखा.
कुछ समय पहले ये रचना जी का ये
पोस्ट देखकर इस विषय पर लिखने की प्रेरणा मिली. कविता लिखते हुए लगा कि ये विषय मेरे मन में गहरा पैठा है, कोशिश करूँगी, आगे भी इस विषय पर लिखूं.
ये कविता का एक अंश:
पुत्री, बहन, पत्नी बनी,
मैं मातृत्व की भी धनी,
पर है परिचय अतिरिक्त भी,
मैं महत्वाकांक्षा से उद्दीप्त भी,
लालसा नहीं मेरी ललक है,
मेरे प्रयत्नों की अलख है,
सम्पूर्णता की कांक्षित हूँ,
मैं सक्षम हूँ, मैं शिक्षित हूँ.
पूरी पड़ने हेतु नीचे दी कढ़ी पर जाएँ:
सक्षम, शिक्षित नारी के आत्मविश्वास को शब्दों में पिरोती कविता...
अब अबला नहीं, न मैं दयापात्र, मैं नहीं पुरुष की छाया मात्र,
अब नहीं किसी पर आश्रित हूँ, मैं सक्षम हूँ, मैं शिक्षित हूँ.
उम्मीद है पाठकों तक अपनी बात पहुँचाने में भी सक्षम रहूँगी. :)