यूँ तो ये कविता पुरानी है, पर मेरी इतनी प्यारी यादों को संजोए है, कि पढ़कर आज भी मन मयूर नाच उठता है... मेरी नृत्य कक्षा को समर्पित..
वाम विराजी हैं महालक्ष्मी गणपति के संग,
समकक्ष केंद्र में हैं नटराज नृत्य में मनंग,
चरणों में साजे घुंघरू बाजे हाथ में मृदंग,
सर्वोच्च सुशोभित भगवती का निराला ढंग,
समकक्ष केंद्र में हैं नटराज नृत्य में मनंग,
चरणों में साजे घुंघरू बाजे हाथ में मृदंग,
सर्वोच्च सुशोभित भगवती का निराला ढंग,
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